tag:blogger.com,1999:blog-79889988638579880212023-11-15T07:56:18.931-08:00अतीत से वर्तमान तकRajivhttp://www.blogger.com/profile/05867052446850053694noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-7988998863857988021.post-88773409955525973932011-01-30T06:00:00.000-08:002011-01-30T06:01:39.383-08:00जितिया (पुत्र-रक्षा व्रत)मैंने देखा है तुम्हें<br />रखते हुए व्रत<br />जितिया का<br />बार-बार,लगातार<br />वर्ष-दर-वर्ष.<br />जानता हूँ <br />परंपरा से ही यह<br />आया है तुझमें.<br /><br />कहते हैं<br />रखने से यह व्रत<br />दीर्घायु होते हैं बच्चे,<br />टल जाती हैं<br />आनेवाली बलाएँ,<br />निष्कंटक हो जाता है<br />उनका जीवन.<br /><br />देखा है मैंने<br />तुम्हें रहते हुए<br />निर्जलाहार<br />सूर्योदय से सूर्योदय तक,<br />तुम्हारे कुम्हलाए चेहरे में<br />देखा है<br />आत्मविश्वास का सूरज<br />उगते हुए.<br /><br />देखा है तुम्हें <br />किसी तपी सा<br />करते हुए तप<br />पूरी निष्ठा से,<br />मौन रहकर <br />मौन से करते हुए बात,<br />देखा है तुम्हें<br />निहारते हुए शून्य में,<br />माँगते हुए मन ही मन<br />विधाता से आशीष<br />अपने बच्चों केलिये.<br /><br />अपने अटूट विश्वास के सहारे<br />कर लेना चाहती हो<br />अपने सारे सपने साकार<br />कर लेना चाहती हो<br />सारी भव-बाधाएं पार.<br /> <br />चाहती हो<br />तुम्हारे रहते न हो<br />उनका कोई अहित<br />चाहे कितना भी<br />क्यों न उठाना पड़े कष्ट,<br />रखना पड़े व्रत-उपवास.<br /><br />शायद<br />उबरना चाहती हो<br />अनिष्ट की आशंका से,<br />थमाना चाहती हो पतवार<br />अपने डूबते-उतराते मन को,<br /><br />तभी तो तुम<br />आस्था के दीप जला<br />इस व्रत के सहारे<br />करती हो आवाह्न<br />अपने इष्ट का,<br />जोड़ती हो दृश्य को अदृश्य से<br />पूरे समर्पण के साथ.<br /><br />रखकर निर्जला व्रत,<br />कर अन्न-जल का त्याग<br />तोलती हो<br />उसमें अपना विश्वास,<br />सौंपकर उसके हाथों में<br />अपने उम्मीद की डोर<br />हो जाती हो निःशंक<br />किसी अनहोनी से.<br /><br />जी लेना चाहती हो<br />रिश्तों से भरा जीवन ,<br />भयमुक्त,खुशियों भरा,<br />तभी तो आज भी रखती हो<br />निर्जला व्रत जितिया का.Rajivhttp://www.blogger.com/profile/05867052446850053694noreply@blogger.com31tag:blogger.com,1999:blog-7988998863857988021.post-66951977915809617672011-01-27T03:43:00.000-08:002011-01-27T03:58:18.317-08:00न जाने क्यों?न जाने क्यों?<br />लोग प्यासे रह जाते हैं<br />पानी नहीं बचाते.<br />जलते रहते है <br />जेठ की दोपहरी में,<br />मगर पेड़ नहीं लगाते.<br />न जाने क्यों?<br /><br />देखते हैं घायल को <br />सड़क पर तड़पते,<br />तड़प-तड़पकर कर <br />दम तोड़ते हुए <br />तमाशबीन बनकर,<br />मगर सहायता के लिए <br />आगे नहीं आते, <br />उसे अस्पताल <br />नहीं पहुंचाते.<br />न जाने क्यों?<br /><br />देखते हैं सरेआम<br />झपटमारी, छेड़-छाड़,<br />नहीं करते विरोध,<br />मदद को <br />आगे नहीं आते.<br />काटकर कन्नी <br />निकल लेते हैं.<br />न जाने क्यों?<br /><br />सहते रहते हैं<br />सारे जुल्मों-सितम<br />चुप-चाप , <br />आवाज नहीं उठाते,<br />नहीं करते प्रतिकार. <br />न जाने क्यों?<br /><br />रह लेते हैं <br />घुप्प अँधेरे में<br />चुपचाप ,<br />दीया नहीं जलाते,<br />ढूंढ़कर नहीं लाते<br />दूसरा सूरज.<br />न जाने क्यों?.Rajivhttp://www.blogger.com/profile/05867052446850053694noreply@blogger.com28tag:blogger.com,1999:blog-7988998863857988021.post-16883188379784305312011-01-21T22:49:00.000-08:002011-01-22T00:03:41.859-08:00तुम तक जाना है मुझेतुम तक जाना है<br />समय कटता नहीं,<br />विरह में जलता हूँ,<br />हसरत-भरी निगाहों से<br />देखता हूँ<br />सामने<br />सड़क के पार <br />जहाँ है तुम्हारा घर<br />हरियाली के बीच.<br /> <br />हमदोनों के घरों के बीच<br />है चिलचिलाती धूप<br />जेठ की दोपहरी की<br />हैं दरारों भरे सूखे खेत,<br />जहाँ चलते हैं<br />लू के बेरहम थपेड़े<br />गर्म हवाओं में बहता है<br />पानी का भरम. <br />दिखता है चारो ओर<br />पानी ही पानी ,<br />प्यास ही प्यास.<br />रास्ते लगते हैं<br />ठिठककर ठहरे हुए.<br /><br />चाहत और दूरियां<br />चलती हैं साथ-साथ<br />एक-दूसरे के समानान्तर.<br />न दूरियां ख़त्म होती है<br />न ही मिलन की आस .<br /> <br />ख़ुशी बस इतनी सी है<br />तुम बस जाओगी<br />मेरी यादों में<br />एक तड़प बनकर.<br /><br />तड़प<br />जो इंतजार करना सिखाता है,<br />औरों के लिए<br />जीना-मरना सिखाता है.Rajivhttp://www.blogger.com/profile/05867052446850053694noreply@blogger.com31