तुम तक जाना है
समय कटता नहीं,
विरह में जलता हूँ,
हसरत-भरी निगाहों से
देखता हूँ
सामने
सड़क के पार
जहाँ है तुम्हारा घर
हरियाली के बीच.
हमदोनों के घरों के बीच
है चिलचिलाती धूप
जेठ की दोपहरी की
हैं दरारों भरे सूखे खेत,
जहाँ चलते हैं
लू के बेरहम थपेड़े
गर्म हवाओं में बहता है
पानी का भरम.
दिखता है चारो ओर
पानी ही पानी ,
प्यास ही प्यास.
रास्ते लगते हैं
ठिठककर ठहरे हुए.
चाहत और दूरियां
चलती हैं साथ-साथ
एक-दूसरे के समानान्तर.
न दूरियां ख़त्म होती है
न ही मिलन की आस .
ख़ुशी बस इतनी सी है
तुम बस जाओगी
मेरी यादों में
एक तड़प बनकर.
तड़प
जो इंतजार करना सिखाता है,
औरों के लिए
जीना-मरना सिखाता है.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteराजीव सुपुत्र
ReplyDeleteआशीर्वाद
आपकी कविता के भाव भावुकतापूर्ण भावनाओं से भरपूर स्टीक
लिखते रहे
कलम ठंडी ना होने पाए
धन्यवाद
आपकी गुड्डो दादी चिकागो से
आपकी ब्लॉग डिलीट कैसे हो गई पढ़ कर दुःख हुआ हिम्मत ना हारिये
भगवान भला करेंगे
तड़प
ReplyDeleteजो इंतजार करना सिखाती है,
औरों के लिए
जीना-मरना सिखाती है.
tadap maun bhi to kar jati hai n
इसी तड़प से तो धड़कनों को बल मिलता है।
ReplyDeleteRajeev ji....Apka ye Rachna bahut pasand aayi. Apko Shubhkaamnayen.
ReplyDeleteRachana Dixit
ReplyDeleteto me
आदरणीय राजीव जी,
आपके नए ब्लॉग पर प्रतिक्रिया डालने का बहुत प्रयास किया पर वर्ड वेरिफिकेशन के चलते पोस्ट नहीं हो पा रहा है
" सच ही है,तड़प तो होनी ही चाहिए यदि कुछ पाना है. तड़प है तो कुछ भी हासिल किया जा सकता है"
वेलकम बैक...
ReplyDeleteकविता बहुत अच्छी है... हमेशा की तरह...
बधाई...
इंतजार के पल और सब्र का फल मीठा होता है, यानि दोनों हाथ में लड्डू. शब्द पुष्टिकरण की बाधा हटाने के बारे में कृपया विचार करें.
ReplyDeleteआदरणीय राहुल सर , रविन्द्र रवि जी , प्रवीण पाण्डेय जी ,विरेन्द्र सिंह चौहान जी ,आदरणीया गुड्डोदादी, रश्मि प्रभा दीदी, रचना दीक्षित जी, पूजा जी मेरे ब्लॉग पर आकर मेरा मनोबल बढ़ने केलिए ह्रदय से आभार.
ReplyDeleteतड़प
ReplyDeleteजो इंतजार करना सिखाता है,
औरों के लिए
जीना-मरना सिखाता है !
बहुत सुन्दर रचना !
कविता बहुत अच्छी है...
ReplyDeleteशुभकामनाएं इस नए ब्लॉग के लिए।
ReplyDeleteकविता तो सीधे दिल में उतरती है। निम्न पंक्तियां बेहद पसंद आई
चाहत और दूरियां
चलती हैं साथ-साथ
एक-दूसरे के समानान्तर.
न दूरियां ख़त्म होती है
न ही मिलन की आस .
vandana gupta
ReplyDeleteto me
ओह, बहुत ही तड़प भर दी है ............क्या बात है ?
naye blog ke liye shubhkaamna ! yah kavita adbhud prabhav chhodti hai..
ReplyDeletevery nice poem Rajiv jee thanks for posting..
ReplyDeleteचाहत और दूरियां
ReplyDeleteचलती हैं साथ-साथ
एक-दूसरे के समानान्तर.
न दूरियां ख़त्म होती है
न ही मिलन की आस .
बहुत सटीक प्रस्तुति..मर्मस्पर्शी भावों से परिपूर्ण..बहुत सुन्दर
तड़प
ReplyDeleteजो इंतजार करना सिखाती है,
औरों के लिए
जीना-मरना सिखाती है.
क्या बात है बहुत दिनों बाद आपका लिखा पढ़ने को मिला .आभार.
मर्मस्पर्शी प्रस्तुति.
राजीव जी, बहुत गहरी बात कह दी आपने। बधाई।
ReplyDeleteमेल द्वारा सूचना के लिए आभार।
---------
सचमुच मुकर्रर है कयामत?
कमेंट करें, आशातीत लाभ पाएं।
tadapti hui post...:D
ReplyDeletedil khush ho gaya...
ab mera blog bhi gayab ho rakha hai, comment dene ka mood hi nahi kar rha......:(
चाहत और दूरियां
ReplyDeleteचलती हैं साथ-साथ
एक-दूसरे के समानान्तर.
न दूरियां ख़त्म होती है
न ही मिलन की आस .
बहुत सुंदर रचना है। खासकर ये पंक्तियां बहुत अच्छी लगीं....
चाहत और दूरियां
ReplyDeleteचलती हैं साथ-साथ
एक-दूसरे के समानान्तर.
न दूरियां ख़त्म होती है
न ही मिलन की आस .
tadap n ho to zingagi kaisi !
sundar bhaw !
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआपकी रचना अच्छी लगी...आगे भी ऐसी रचनाएं पढ़ने को मिले इसलिए आपका ब्लॉग फॉलो कर लिया...
ReplyDeletesundar rachna
ReplyDeleteसुन्दर और प्रभावशाली कविता .
ReplyDeleteBEAUTIFUL POEM.
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की आपको भी हार्दिक शुभकामनायें.
सुन्दर और प्रभावशाली कविता|
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की आपको भी हार्दिक शुभकामनायें|
BEhtreen Abhivyakti
ReplyDeleteati sundar
ReplyDeleteखूबसूरत और भावपूर्ण प्रस्तुति..!!
ReplyDeletesundar likha hai..
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