Thursday, January 27, 2011

न जाने क्यों?

न जाने क्यों?
लोग प्यासे रह जाते हैं
पानी नहीं बचाते.
जलते रहते है
जेठ की दोपहरी में,
मगर पेड़ नहीं लगाते.
न जाने क्यों?

देखते हैं घायल को
सड़क पर तड़पते,
तड़प-तड़पकर कर
दम तोड़ते हुए
तमाशबीन बनकर,
मगर सहायता के लिए
आगे नहीं आते,
उसे अस्पताल
नहीं पहुंचाते.
न जाने क्यों?

देखते हैं सरेआम
झपटमारी, छेड़-छाड़,
नहीं करते विरोध,
मदद को
आगे नहीं आते.
काटकर कन्नी
निकल लेते हैं.
न जाने क्यों?

सहते रहते हैं
सारे जुल्मों-सितम
चुप-चाप ,
आवाज नहीं उठाते,
नहीं करते प्रतिकार.
न जाने क्यों?

रह लेते हैं
घुप्प अँधेरे में
चुपचाप ,
दीया नहीं जलाते,
ढूंढ़कर नहीं लाते
दूसरा सूरज.
न जाने क्यों?.

28 comments:

  1. क्या खुब लिखा है आपने...बहुत सुंदर

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  2. दो सूरज वाला ग्रह भी ढूढ़ लिया गया है।

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  3. प्रेरित करती कविता अपनी सार्थकता सिद्ध करती है...

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  4. न जाने क्यूँ!!!!


    काश, लोग समझ पाते!

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  5. सहते रहते हैं
    सारे जुल्मों-सितम
    चुप-चाप ,
    आवाज नहीं उठाते,
    नहीं करते प्रतिकार.
    न जाने क्यों?
    यही तो समझ नही आता। शुभकामनायें।

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  6. खुद से किए जा रहे सवालों जैसा.

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  7. देखते हैं सरेआम
    झपटमारी, छेड़-छाड़,
    नहीं करते विरोध,
    मदद को
    आगे नहीं आते.
    काटकर कन्नी
    निकल लेते हैं.
    न जाने क्यों?....

    बहुत सुंदर ....

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  8. न जाने क्यूं???
    इसी बात का तो रोना है...
    काश लोग यही बातें समझ जाते तो आज इस "न जाने क्यूं" की जरूरत ही न पड़ती...
    बहुत ही सत्य रचना...

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  9. Behtreen NAjm Rajiv ji dil ko chu gayi

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  10. Shahnawaz Siddiqui to me
    आपकी कविता बहुत ही खूबसूरत है, लेकिन आपका भेजा हुआ लिंक नहीं चल रहा है, इसलिए आपके ब्लॉग पर नहीं जा पाया.

    - शाहनवाज़

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  11. दिनेशराय द्विवेदी to me

    रचना बेहतरीन है। लेकिन लिंक नहीं खुल रहा है।

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  12. vandana gupta to me
    बस इसी प्रश्न का उत्तर नहीं मिलता.........बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  13. veena srivastava to me
    लिंक से ब्लॉग तक जा नहीं पाई.....आपने तो बहुत सही प्रश्न किया है और सारी बातों के बाद एक ही प्रश्न होता है...न जाने क्यों
    बहुत सुंदर

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  14. रह लेते हैं
    घुप्प अँधेरे में
    चुपचाप ,
    दीया नहीं जलाते,
    ढूंढ़कर नहीं लाते
    दूसरा सूरज.
    न जाने क्यों?.
    yahi aksar maine bhi socha hai

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  15. Rachana Dixit to me

    आदरणीय राजीव जी,
    " सच ही है,तड़प तो होनी ही चाहिए यदि कुछ पाना है. तड़प है तो कुछ भी हासिल किया जा सकता है"

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  16. न जाने क्यूं
    बहुत पसन्द आया
    हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
    बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

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  17. सार्थक सुंदर भाव..... बेहतरीन रचना

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  18. वाकई... न जाने क्यों ?

    आपके इस ब्लाग को फालो कर रहा हूँ । यदि आप उचित समझें तो मेरे ब्लाग नजरिया पर आने के लिये लिंक ये है-
    http://najariya.blogspot.com/

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  19. राजीव जी,
    आपकी कविता में "क्यों".शब्द बड़े प्रश्न खड़े कर रहा है. मुझे "क्यों" पर किसी का एक शेर याद आ रहा है.आप भी देखिये:-

    दुनिया में हर सवाल का कोई जवाब है.
    लेकिन सवाल "क्यों' ही फकत लाजवाब है.

    वैसे आपने प्रश्न सही उठाये हैं

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  20. कौन उत्तर दे .........

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  21. रह लेते हैं
    घुप्प अँधेरे में
    चुपचाप ,
    दीया नहीं जलाते,
    ढूंढ़कर नहीं लाते
    दूसरा सूरज.
    न जाने क्यों?...

    हरेक पंक्ति मन को छू गयी..न जाने क्यों निशब्द कार दिया...

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  22. Rekha Srivastava
    to me

    show details Jan 28 (1 day ago)

    राजीव जी,

    आपका लिंक नहीं खुल पा रहा है, कविता तो मैंने पढ़ ली है उसकी टिप्पणी नीचे दे रही हूँ. आप उसको कमेन्ट में लगा दें.
    अगर हम ये जान लें की क्यों ऐसा करते हैं लोग तो खुद ये सवाल नहीं करेंगे? उनकी संवेदनाएं हमारी जैसी नहीं होंगी कि दूसरे के दर्द से खुद तड़प जाते हैं. कैसे बचा लें किसी को ये सोच कर ही काम करते हैं. हम सिर्फ अपना कर्म करें फिर क्यों? नहीं कहना पड़ेगा. क्योंकि इस प्रश्न का उत्तर तो हमारे पास भी नहीं है.

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  23. Thursday, January 27, 2011न जाने क्यों?
    न जाने क्यों?
    लोग प्यासे रह जाते हैं
    पानी नहीं बचाते.
    जलते रहते है
    जेठ की दोपहरी में,
    मगर पेड़ नहीं लगाते.
    न जाने क्यों?

    सच मे ऐसी रचनाएं दिल को छू जाती हैं।

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  24. n jaane kyon....bahut achchhi lagi...

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  25. न जाने क्यूँ ?????
    और इन सवालों के कोई जवाब नहीं हैं..!!

    "न जाने क्यूँ लोग
    रिश्तों की मर्यादा भूल जाते हैं
    अपने घर में बबूल लगाते हैं
    और दूसरों के घर में
    आम खाने जाते हैं...!!"

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  26. आपका ब्लाग देखा, सभी रचनाए बहुत अच्छी है।

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  27. सुनीता जी,बहुत-बहुत आभार.

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