मैंने देखा है तुम्हें
रखते हुए व्रत
जितिया का
बार-बार,लगातार
वर्ष-दर-वर्ष.
जानता हूँ
परंपरा से ही यह
आया है तुझमें.
कहते हैं
रखने से यह व्रत
दीर्घायु होते हैं बच्चे,
टल जाती हैं
आनेवाली बलाएँ,
निष्कंटक हो जाता है
उनका जीवन.
देखा है मैंने
तुम्हें रहते हुए
निर्जलाहार
सूर्योदय से सूर्योदय तक,
तुम्हारे कुम्हलाए चेहरे में
देखा है
आत्मविश्वास का सूरज
उगते हुए.
देखा है तुम्हें
किसी तपी सा
करते हुए तप
पूरी निष्ठा से,
मौन रहकर
मौन से करते हुए बात,
देखा है तुम्हें
निहारते हुए शून्य में,
माँगते हुए मन ही मन
विधाता से आशीष
अपने बच्चों केलिये.
अपने अटूट विश्वास के सहारे
कर लेना चाहती हो
अपने सारे सपने साकार
कर लेना चाहती हो
सारी भव-बाधाएं पार.
चाहती हो
तुम्हारे रहते न हो
उनका कोई अहित
चाहे कितना भी
क्यों न उठाना पड़े कष्ट,
रखना पड़े व्रत-उपवास.
शायद
उबरना चाहती हो
अनिष्ट की आशंका से,
थमाना चाहती हो पतवार
अपने डूबते-उतराते मन को,
तभी तो तुम
आस्था के दीप जला
इस व्रत के सहारे
करती हो आवाह्न
अपने इष्ट का,
जोड़ती हो दृश्य को अदृश्य से
पूरे समर्पण के साथ.
रखकर निर्जला व्रत,
कर अन्न-जल का त्याग
तोलती हो
उसमें अपना विश्वास,
सौंपकर उसके हाथों में
अपने उम्मीद की डोर
हो जाती हो निःशंक
किसी अनहोनी से.
जी लेना चाहती हो
रिश्तों से भरा जीवन ,
भयमुक्त,खुशियों भरा,
तभी तो आज भी रखती हो
निर्जला व्रत जितिया का.
संदेह नहीं कहीं तनिक भी
ReplyDeleteशायद मत कहें
मन में है विश्वास
पूरा है विश्वास
कार्यशाला के समाचार
bahut sundar badhai ...
ReplyDeleteयही तो है अर्धांगनि होती है..........बहुत ही सुंदर रचना
ReplyDeleteमां को समर्पित रचना को पढ़कर माँ याद आ गई बेहद भावपूर्ण रचना अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteएक माँ के मन का बहुत सुन्दरता से किया है वर्णन -
ReplyDeleteसुंदर रचना -
मां को समर्पित बहुत ही सुंदर रचना
ReplyDeleteममता की अप्रतिम अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteyah samarpan aashish banker aapke saath hoga
ReplyDeleteमाँ जो हूँ........
ReplyDeleteआखिर तो माँ की ममता है ।
ReplyDeleteजननी माँ शत प्रणाम चरणों में
ReplyDeleteअँधेरा तेरा मुख काला हो गया
माँ के आशीर्वाद से जीवन में उजाला हो गया
इसी को तो कहते हैं मां.....
ReplyDeleteतभी तो कहते हैं दोस्त ....................
ReplyDeleteममता भी तू समता भी तू
उसकी भी तू मेरी भी तू
सबकी जन्मदाता है तू
लक्ष्मी भी तू काली भी तू
सारे कण - कण मे समाई तू
मेरा आज तू मेरा कल भी तू
मेरी प्यारी - प्यारी माँ जो है तू !
बहुत ही सुन्दर रचना जेसे एक एक शब्द बोल रहा हो !
बहुत सुन्दर लिखा है आपने !
आपकी सजग दृष्टि के माध्यम से झलकती ममता.
ReplyDeleteमाँ के त्याग और अपनी संतान के प्रति मोह और स्नेह को व्यक्त करती हुई कविता वाकई बहुत ही मर्मस्पर्शी है. इसी लिए माँ हर हाल में वन्दनीय है.
ReplyDeleteRanjana to me
ReplyDeleteकितने सुन्दर ढंग से भावों को आपने शब्दों में बाँध है....बस मन मुग्ध होकर रह गया...
बहुत सुन्दर लेखनी...वाह !!!!
bahut sunder ..mujhe apne ghar ki yaad aa rahi hai....aur bachpan bhi...thanks for such post.
ReplyDeleteशायद इसलिए की वो माँ है...
ReplyDeleteतिजिया क्या, तिजिया जैसे कई व्रत रख ले वो अपने बच्चों के लिए...
Sunder rachna....waah
ReplyDeleteदेखा है मैंने
ReplyDeleteतुम्हें रहते हुए
निर्जलाहार
सूर्योदय से सूर्योदय तक,
तुम्हारे कुम्हलाए चेहरे में
देखा है
आत्मविश्वास का सूरज
उगते हुए.
yahi apnatav aur prem hai .
holi ki dhero badhai aapko .
ReplyDeleteजी लेना चाहती हो
ReplyDeleteरिश्तों से भरा जीवन ,
भयमुक्त,खुशियों भरा,
तभी तो आज भी रखती हो
निर्जला व्रत जितिया का. ....
भावुक करती पंक्तियाँ..
.
मन को बहुत गहराई तक छू गए आपके ये शब्द.... माँ ऐसी ही होती है, निस्स्वार्थ, निष्कपट, ममता की मूर्ती, वो तो कुछ भी कर जाये अपने बच्चों की खातिर ... कोमल भाव के साथ बेहतरीन प्रस्तुति......
ReplyDeleteसुंदर कवि्ता
ReplyDeleteआभार
bahut sunder rachana...har shabd ke sath vrat ki ek ek vidhi aankhon ke aage sakar karti hui...
ReplyDeleteममता की अप्रतिम अभिव्यक्ति। आभार|
ReplyDeletesundar likha hai. isi aastha par hamara astitv hai...
ReplyDeleteBAHUT SUNDAR RACHNA.. DHANYWAAD. . . . JAI HIND JAI BHARAT
ReplyDeleteमां को समर्पित बहुत ही सुंदर रचना
ReplyDeleteआज का आगरा ,भारतीय नारी,हिंदी ब्लॉगर्स फ़ोरम इंटरनेशनल , ब्लॉग की ख़बरें, और एक्टिवे लाइफ ब्लॉग की तरफ से रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं
सवाई सिंह राजपुरोहित आगरा
आप सब ब्लॉगर भाई बहनों को रक्षाबंधन की हार्दिक बधाई / शुभकामनाएं
♥
ReplyDeleteआपको नवरात्रि की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
माँ की महिमा कही भी पूरी नहीं लिखी जा सकती... माँ खुद पूरा ब्रह्मांड है .. फिर भी हम उस माँ के लिए लिखना चाहते है चाहे वह सूरज को दीया दिखाना जैसा हो .. आपने वह दीया बखूबी जलाया ...आपकी रचना बहुत अच्छी है...
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