Sunday, January 30, 2011

जितिया (पुत्र-रक्षा व्रत)

मैंने देखा है तुम्हें
रखते हुए व्रत
जितिया का
बार-बार,लगातार
वर्ष-दर-वर्ष.
जानता हूँ
परंपरा से ही यह
आया है तुझमें.

कहते हैं
रखने से यह व्रत
दीर्घायु होते हैं बच्चे,
टल जाती हैं
आनेवाली बलाएँ,
निष्कंटक हो जाता है
उनका जीवन.

देखा है मैंने
तुम्हें रहते हुए
निर्जलाहार
सूर्योदय से सूर्योदय तक,
तुम्हारे कुम्हलाए चेहरे में
देखा है
आत्मविश्वास का सूरज
उगते हुए.

देखा है तुम्हें
किसी तपी सा
करते हुए तप
पूरी निष्ठा से,
मौन रहकर
मौन से करते हुए बात,
देखा है तुम्हें
निहारते हुए शून्य में,
माँगते हुए मन ही मन
विधाता से आशीष
अपने बच्चों केलिये.

अपने अटूट विश्वास के सहारे
कर लेना चाहती हो
अपने सारे सपने साकार
कर लेना चाहती हो
सारी भव-बाधाएं पार.

चाहती हो
तुम्हारे रहते न हो
उनका कोई अहित
चाहे कितना भी
क्यों न उठाना पड़े कष्ट,
रखना पड़े व्रत-उपवास.

शायद
उबरना चाहती हो
अनिष्ट की आशंका से,
थमाना चाहती हो पतवार
अपने डूबते-उतराते मन को,

तभी तो तुम
आस्था के दीप जला
इस व्रत के सहारे
करती हो आवाह्न
अपने इष्ट का,
जोड़ती हो दृश्य को अदृश्य से
पूरे समर्पण के साथ.

रखकर निर्जला व्रत,
कर अन्न-जल का त्याग
तोलती हो
उसमें अपना विश्वास,
सौंपकर उसके हाथों में
अपने उम्मीद की डोर
हो जाती हो निःशंक
किसी अनहोनी से.

जी लेना चाहती हो
रिश्तों से भरा जीवन ,
भयमुक्त,खुशियों भरा,
तभी तो आज भी रखती हो
निर्जला व्रत जितिया का.

31 comments:

  1. संदेह नहीं कहीं तनिक भी
    शायद मत कहें
    मन में है विश्‍वास
    पूरा है विश्‍वास
    कार्यशाला के समाचार

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  2. यही तो है अर्धांगनि होती है..........बहुत ही सुंदर रचना

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  3. मां को समर्पित रचना को पढ़कर माँ याद आ गई बेहद भावपूर्ण रचना अभिव्यक्ति ...

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  4. एक माँ के मन का बहुत सुन्दरता से किया है वर्णन -
    सुंदर रचना -

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  5. मां को समर्पित बहुत ही सुंदर रचना

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  6. ममता की अप्रतिम अभिव्यक्ति।

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  7. आखिर तो माँ की ममता है ।

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  8. जननी माँ शत प्रणाम चरणों में
    अँधेरा तेरा मुख काला हो गया
    माँ के आशीर्वाद से जीवन में उजाला हो गया

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  9. इसी को तो कहते हैं मां.....

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  10. तभी तो कहते हैं दोस्त ....................
    ममता भी तू समता भी तू
    उसकी भी तू मेरी भी तू
    सबकी जन्मदाता है तू
    लक्ष्मी भी तू काली भी तू
    सारे कण - कण मे समाई तू
    मेरा आज तू मेरा कल भी तू
    मेरी प्यारी - प्यारी माँ जो है तू !

    बहुत ही सुन्दर रचना जेसे एक एक शब्द बोल रहा हो !
    बहुत सुन्दर लिखा है आपने !

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  11. आपकी सजग दृष्टि के माध्‍यम से झलकती ममता.

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  12. माँ के त्याग और अपनी संतान के प्रति मोह और स्नेह को व्यक्त करती हुई कविता वाकई बहुत ही मर्मस्पर्शी है. इसी लिए माँ हर हाल में वन्दनीय है.

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  13. Ranjana to me
    कितने सुन्दर ढंग से भावों को आपने शब्दों में बाँध है....बस मन मुग्ध होकर रह गया...
    बहुत सुन्दर लेखनी...वाह !!!!

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  14. bahut sunder ..mujhe apne ghar ki yaad aa rahi hai....aur bachpan bhi...thanks for such post.

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  15. शायद इसलिए की वो माँ है...
    तिजिया क्या, तिजिया जैसे कई व्रत रख ले वो अपने बच्चों के लिए...

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  16. देखा है मैंने
    तुम्हें रहते हुए
    निर्जलाहार
    सूर्योदय से सूर्योदय तक,
    तुम्हारे कुम्हलाए चेहरे में
    देखा है
    आत्मविश्वास का सूरज
    उगते हुए.
    yahi apnatav aur prem hai .

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  17. जी लेना चाहती हो
    रिश्तों से भरा जीवन ,
    भयमुक्त,खुशियों भरा,
    तभी तो आज भी रखती हो
    निर्जला व्रत जितिया का. ....

    भावुक करती पंक्तियाँ..

    .

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  18. मन को बहुत गहराई तक छू गए आपके ये शब्द.... माँ ऐसी ही होती है, निस्स्वार्थ, निष्कपट, ममता की मूर्ती, वो तो कुछ भी कर जाये अपने बच्चों की खातिर ... कोमल भाव के साथ बेहतरीन प्रस्तुति......

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  19. bahut sunder rachana...har shabd ke sath vrat ki ek ek vidhi aankhon ke aage sakar karti hui...

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  20. ममता की अप्रतिम अभिव्यक्ति। आभार|

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  21. sundar likha hai. isi aastha par hamara astitv hai...

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  22. BAHUT SUNDAR RACHNA.. DHANYWAAD. . . . JAI HIND JAI BHARAT

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  23. मां को समर्पित बहुत ही सुंदर रचना

    आज का आगरा ,भारतीय नारी,हिंदी ब्लॉगर्स फ़ोरम इंटरनेशनल , ब्लॉग की ख़बरें, और एक्टिवे लाइफ ब्लॉग की तरफ से रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं

    सवाई सिंह राजपुरोहित आगरा
    आप सब ब्लॉगर भाई बहनों को रक्षाबंधन की हार्दिक बधाई / शुभकामनाएं

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  24. आपको नवरात्रि की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  25. माँ की महिमा कही भी पूरी नहीं लिखी जा सकती... माँ खुद पूरा ब्रह्मांड है .. फिर भी हम उस माँ के लिए लिखना चाहते है चाहे वह सूरज को दीया दिखाना जैसा हो .. आपने वह दीया बखूबी जलाया ...आपकी रचना बहुत अच्छी है...

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